Tuesday, 14 April 2020

GEOGRAPHY अक्षांश ,देशांतर ,अन्तर्राष्टीय तिथि रेखा व् समय

                               अक्षांश 
भू पृष्ट पर रेखा या भूमध्य (Equator) के उतर या दक्षिण में याम्योतर( Meridianसे मापी गई कोणीय दुरी अक्षांश ) पर किसी भी बिंदु को पृथ्वी कहलाती है
= भू मध्य रेखा 0*अक्षांश प्रदर्शित करती है और यह पृथ्वी को दो भागो में बाटती है (1) उतर गोलार्ध्द  (2)दक्षिण गोलार्ध्द 
उतरी व दक्षिण गोलार्द्धों में यह 0* से 90* तक पाई जाती है इस प्रकार 181 अक्षांश रेखाएँ होती है 
= उतरी गोलार्ध्द में 23-1/2  उतरी अक्षांश कर्क रेखा (Tropic of cancer ) और 66-1/2 उतरी उप-आर्कटिक (north sub arctic) कहते है 
= दक्षिण गोलार्ध्द में 23-1/2 दक्षिण अक्षांश मकर रेखा (tropic of capricorn) और दक्षिण अक्षांश दक्षिण उपध्रुव वृत (South Sub Antarctic) कहलाता है 
= प्रत्येक 1* अक्षांशीय दूरी लगभग 111 KM है अर्थात दो अक्षांशो के मध्य की दूरी 111 KM है  
                                देशांतर  
= किसी स्थान की कोणीय दूरी जो प्रधान याम्योतर (meridian) के पूर्व या पश्चिम में होती है देशांतर कहलाती है 
= प्रधान याम्योत्तर रेखा 0* देशांतर को माना गया है | यह लंदन के ग्रीनविच से होकर गुजरती है | 0* के दोनों और 180* तक देशांतर रेखाए होती है जो कुल मिलाकर 360* है 
= जहाँ 0*देशांतर रेखा पृथ्वी को दो बराबर भागो में बाटती है वही सभी रेखाए यह कार्य कराती है 
= इसलिए इन सभी वृत को महान वृत (great सर्किल)कहा जाता है 
= 1* देशांतर रेखा के मध्य की दूरी 111.32 KM होती है अर्थात दो देशान्तरों के मध्य की दूरी 111.32KM होती है यह दूरी ध्रुवो की और जाने पर कम होती जाती है 
= ग्रीनविच रेखा के पूर्व में स्थित 180*तक सभी देशांतर पूर्वी देशांतर एवं पश्चिम के और स्थित सभी देशान्तरों को पश्चिम देशांतर कहे जाते है 
= एक देशांतर की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट  समय लगता है 
= पृथ्वी पश्चिम से पूर्व अपनी धुरी पर घूम रही है अत; पूर्व का समय आगे  और पश्चिम का समय पीछे होता है इसलिए पृथ्वी का समय हर स्थान पर अलग अलग होता है 
= प्रत्येक 15*देशांतर पर एक घंटे का अंतर होता है इसलिए दोनो गोलार्ध्द में के समय में 12 घंटे का अंतर रहता है 
                         अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 
पृथ्वी पर 180*याम्योत्तर के लगभग साथ साथ स्थलखंडो को छोड़ते हुए निर्धारित की गई काल्पनिक रेखा अन्तर्राष्टीय तिथि रेखा (International Date Line) कहलाती है 
= अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पूर्व व पश्चिम में एक दिन का अंतर पाया जाता है अत इसे पार करते समय एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है 
= जब कोई जलयान अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पार कर पश्चिम दिशा में यात्रा करता है तो एक दिन जोड़ दिया जाता है तथा जब पूर्व दिशा की यात्रा करता है तो एक दिन घटा दिया जाता है                                                   


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Monday, 13 April 2020

GEOGRPAHYA पृथ्वी की आतंरिक सरचना

                                            पृथ्वी की  आतंरिक  सरचना 

वैज्ञानिको ने पृथ्वी की आंतरिक सरचना की जानकारी के लिए निम्न स्रोतों को आधार बनाया है
(1) अप्राकृतिक स्रोत (१) -घनत्व आधरित स्रोत (२) -दाब आधारित स्रोत (३) - ताप आधारित स्रोत
(2) पृथ्वी  की उत्पति संबंधी स्रोत
(3) प्राकृतिक स्रोत (१)  - ज्वालामुखी आधारित स्रोत (२) उल्का पिंड से प्राप्त साक्ष्य (३) - भूकम्पीय तरंगो पर आधरित स्रोत
      1 अप्राकृतिक साधन (अर्टिफिकल sources )
1 घनत्व (density)-पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है जब की भू -पर्पटी (crust ) का घनत्व लगभग 3.0 है इसके अनुसार यह पता चलता है की पृथ्वी का क्रोड (अंतरतम) का औसत घनत्व 5.5 से अधिक होगा | वही साधारण यह घनत्व 11 माना जाता है | जो की जल से 7 से 8 गुना भारी है| इन सबसे  पता चलता है की पृथ्वी के क्रोड (core)का घनत्व सर्वाधिक है
  2 दबाव (pressure)-क्रोड (core) के अधिक घनत्व के संबध में चटटानो के भार व दबाव का संदर्भ लिया जा सकता है यधपि दबाव बढ़ने से घनत्व बढ़ता है किन्तु प्रत्येक चट्टान की अपनी एक सीमा  है जिससे अधिक इसका घनत्व नहीं हो सकता है चाहे दबाव कितना ही अधिक क्यों न कर दिया जाए इसके अनुसार पता चलता है की आंतरिक भाग की चट्टाने अधिक घनत्व वाली भारी धातुओं से बानी है
3 तापक्रम (temperature)- सामान्य रूप से 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 1*c की वृध्दि होती है परन्तु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृध्दि दर में भी गिरावट आती है
(१)- प्रथम 100 किमी की गहराई में प्रत्येक किमी पर 12*C की वृध्दि होती है उसके बाद के 300 किमी की गहराई में प्रत्येक किमी पर 2*C की वृध्दि होती है एवं उसके बाद प्रत्येक किमीकी गहराई पर 1*C तापमान की वृध्दि होती है पृथ्वी के आंतरिक भाग से ऊष्मा का प्रवाह बाहर की और होता रहता है जो तापीय संवहन तरंगो के रूप में होता है
          प्राकृतिक साधन (natural sources)
1 ज्वालामुखी क्रिया -ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाला तप्त व तरल मैग्मा के आधार पर  स्पष्ट होता है की पृथ्वी की गहराई में कही न कही ऐसी परत अवश्य है जो तरल या अर्द्धतरल अवस्था में है ऐसी को मैग्मा भंडार (magma chamber) कहा गया है जवालामुखी उदगार से पृथ्वी की आंतरिक बनावट के संबंध में कोई निश्चित  जानकारी नहीं मिल पाती है
2 भूकम्प विज्ञानं के साक्ष्य -भूकम्प विज्ञान वह विज्ञान है जिसमे भूकम्पीय लहरों का सीस्मोग्राप यंत्र (seismograph) द्वारा अंकन कर अध्ययन किया जाता है यह एक साधन है जिससे पृथ्वी की आतंरिक सरचना के  बारे में प्रत्यक्ष रूप से जानकारी प्राप्त होती है 
3 उल्का पिण्डो से प्राप्त साक्ष्य -उल्का पिंड वे ठोस संरचनाए है जो स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष में तैर रही है कभी कभी पृथ्वी के गुरुत्वीय प्रभाव क्षेत्र में आने पर ये पिंड पृथ्वी से टकरा जाते है पृथ्वी पर गिरने के दौरान अत्यधिक घर्षण के कारण उल्का पिंडो की बाहरी परत नष्ट हो जाती है और आंतरिक भाग अनावृत हो जाता है उनके केंन्द्रीय भाग में पाए जाने वाले भारी पदार्थों के संघटन के आधार पर ही पृथ्वी की आंतरिक सरचना का अनुमान लगाया जाता है 
    पृथ्वी की उत्पति से सम्बंधित सिद्धांतो के साक्ष्य 
1 ग्रहाणु परिकल्पना- यह पृथ्वी के क्रोड (अंतरतम) को ठोस मानती है 
2 ज्वारीय परिकल्पना एवं वायव्य निहारिका परिकल्पना -पृथ्वी को तरल माना गया है इससे पृथ्वी के आंतरिक भाग की दो ही संभावनाए बनती है या तो तरल या ठोस 
 पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परते 
international Union of Geodesy and Geophysics (IUGG) के शोध के आधार पर पृथ्वी के आतंरिक भाग को तीन वृहद मंडलो में विभक्त किया जाता है 
1 भू -पर्पटी (crust)-भू पर्पटी की औसत मोटाई 30 KM मानी जाती है  वही कही जगह पर इसकी मोटाई 100 KM बताई गई है
= इसके दो भाग है ऊपरी क्रस्ट  वह निचली क्रस्ट 
=क्रस्ट के ऊपरी भाग में  P लहर की गति 6.1 km प्रति सेकेंड  तथा निचले भाग में इसकी गति 6 .9 km प्रति सेकेण्ड होती है 
= ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2 .7  होता है  वही निचली क्रस्ट का औसत घनत्व 3.0 है यह अंतर दबाव के कारण होता है 
=ऊपरी क्रस्ट व निचली क्रस्ट के मध्य कोनराड असंबंदता कहलाती है 
=क्रस्ट का निर्माण मुख्यत;सिलिका और एलुमिनियम से हुआ है 
=इसे सियाल (Sial)परत भी कहा जाता है 


2 मैटल (mantle)- इसको दो भागो में बाटते है 1 ऊपरी मैटल 2 निचली मैटल 
= क्रस्ट के निचले आधार पर भूकम्पीय लहरों की गति में अचानक वृदि होती है और यह बढ़
कर 7.9 से 8.1 KM प्रति सेकेण्ड हो जाती है
= निचली क्रस्ट व ऊपरी मैटल के मध्य मोहोरोविक असंबंध्दता होता है और यह चट्टानों के घनत्व में परिवर्तन को दर्शाता है  इसकी खोज रुसी वैज्ञानिक  मोहोरोविक ने 1909 ई में की थी 
=इस असंब ध्दता का विस्तार 700  KM की गहराई तक है 
= ऊपरी मैटल और निचली मैटल के मध्य रेवेटी असंबंधता होता है इसका विस्तार 700 KM से 2900 KM तक होता है 
=सम्पूर्ण मैटल परत  का विस्तार 30 KM  से 2900 KM तक है 
= मैटल का आयतन पृथ्वी के कुल आयतन (volume) का लगभग 83% एवं द्रव्यमान (mass) का लगभग 68% है 
= इसका निर्माण मुख्यत:सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है इसलिए इसे सीमा (SIMA) परत भी कहते है 
= भूकम्पीय लहरों की गति के आधार पर पुन तीन भागो में बात है 
= मोहो असंबध्दता से 200 KM 
= 200 KM से  700 KM 
=  700 KM से 2900 KM 
=  पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले ज्वालामुखी के मैग्मा की पूर्ति दुर्बलता मंडल (Asthenosphere)  से होती है इसे मैग्मा चैंबर भी कहते है 
                                                                         3 क्रोड (Core)- इसको भी दो भागो में बाट गया है (1) बाह्य क्रोड  (2) आतंरिक क्रोड 
=  निचली मैटल के आधार पर P  तरगो की गति मे अचानक परिवर्तन आता है यह गति बढ़कर 13.6 KM प्रति  s सेकेण्ड हो जाती है 

= निचली मैटल व बाह्य क्रोड के मध्य गुटेनबर्ग असंबध्दता भी कहते है 
= गुटेनबर्ग असंबध्दता से लेकर 6371 KM तक के भाग को क्रोड कहते है 
= बाह्य करोड़ की गहराई 2900 KM से लेकर 5150 KM  तक है 
= आंतरिक क्रोड  की गहराई 5150 km से लेकर 6371 KM तक है 
=बाह्य क्रोड व आतंरिक क्रोड  के मध्य लैहमन असंबध्दता कहते है 
= क्रोड  के सबसे पारी भाग का घनत्व 10 होता है जो अंदर जाने पर 12 से 13 तथा सबसे आतंरिक भाग में 13.6 हो जाता है 
 = इस प्रकार क्रोड  का घनत्व मैटल के घनत्व के दोगुने से भी अधिक होता है 
= बाह्य क्रोड  में s तरग प्रवेश नहीं करती है 
= P  तरग की गति 11.23 km प्रति सेकेंड रह जाती है 
= इसका निर्माण मुख्यत निकेल और लोहा से हुआ है 

अगर इस लेख में गलती हो तो क्षमा करना

Sunday, 30 July 2017

भाग -2 का बाकी


 अरबी शब्द =
         तूफान तराजू तमाशा दुनिया दफतर दौलत नतीजा नशा नकदफ़क़ीर फैसला बहस मदद मतलब लिफाफा शादी शंतरज हलवाई हुक्म

फारसी के शब्द =
           अखबार अमरुद आराम आवारा आसमान आतिशबाजी आमदनी कमर कारीगर कमीना कुश्ती खराब खर्च खून खुश्क गवाह गुब्बारा गुलाब जानवर जेब जगह जमीन जलेबी तनख्वाह तबाह दर्जी दवा दरवाजा दीवार नमक नेक बीमार मजदूर मलाई यार लगाम शेर सूखा सौदागर आदि शब्द

पुर्तगाली शब्द =
       अचार अगस्त आलपिन आलू आया अन्नानास इस्पात कनस्तर कारबन कमीज कमरा गमला गोभी गोदाम चाबी पादरी पिस्तौल बाल्टी मेज संतरा साबुन आदि शब्द

संकर शब्द=
           हिंदी के वे शब्द जो अलग- अलग भाषाओ को मिलाकर बना लिए गये है उन्हें संकर शब्द कहते है
अग्नि बोट          अग्नि (संस्कृत)  +  बोट (अंग्रेजी)
टिकिट -घर         टिकिट (अंग्रेजी) + घर  (हिंदी )
कवि -दरबार        कवि  (हिंदी )      +दरबार (फ़ारसी)
नेक -नीयत        नेक     (फ़ारसी)   + नीयत (अरबी )  आदि शब्द संकर शब्द है


रचना के आधार पर =
     शब्दों की रचना प्रक्रिया के आधार पर हिंदी भाषा के शब्दों के तीन भेद किये जाते  है

  1  रूढ़ शब्द                   2    यौगिक शब्द         3 योग शब्द


1  रूढ़ शब्द =
             वे शब्द जो किसी व्यक्ति स्थान प्राणी और वस्तु के लिए वर्षो से प्रयुक्त होने के कारण किसी विशिष्ट अर्थ में प्रचलित हो गए है 'रूढ़ शब्द 'कहलाते है
  दूध ,गाय, रोटी ,सिंक, पेड़, पत्थर, देवता आकाश, मेंढ़क ,स्त्री ,

2  यौगिक शब्द =
                वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने है उन शब्दों का अपना पृथक अर्थ भी होता है किन्तु वे मिलकर अपने मूल शब्द से संबधित या अन्य किसी नये अर्थ का बोध कराते है यौगिक  शब्द कहलाते है
       समस्त संधि समास उपसर्ग तथा प्रत्यय से बने शब्द यौगिक  शब्द कहलाते है

 विधायल,प्रेमसागर,प्रतिदिन,दूधवाला,राजमाता,ईश्वर-प्रदत,राष्टपति,महर्षि,कृष्णर्पण,चिड़ीमार,

3 योगरूढ़ शब्द=
         वे यौगिक शब्द जिनका निर्माण पृथक ,पृथक अर्थ देने वाले शब्दों के योग से होता है किन्तु वे अपने द्वारा प्रतिपादित अनेक अर्थो में से किसी एक विशेष अर्थ के लिए ही प्रतिपादित होकर रूढ़ ही गये  ऐसे शब्दों को योगरूढ़ शब्द कहलाते है
     पीताम्बर,शब्द पीत और अम्बर ,के योग से बना है गजानन  षडानन ,लम्बोदर,त्रिनेत्र,घनश्याम,विषधर,चक्रधर,दशानन,मुरारी,जलज,जलद ,आदि शब्द

मुख्य प्रश्न 

1 निम्नलिखित में तत्सम शब्द कौनसा है
      i  उल्लू             ii  ऊंट   iii गधा    iv  घोटक

2   निम्नलिखित  तद्भव शब्द कौनसा है
       i  अग्नि    ii ईख    iii   दधि    iv  नयन

3  निम्न में से देशज शब्द कौनसा है
     i  घेवर    ii  मिष्टान्न   iii बैल  iv   खीर

4  योगरूढ़ शब्द का चयन कीजिए
     i आकाश  ii गजानन iii  विधायल iv  दूधवाला




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rajasthan SI HINDI part 2

                                शब्द विचार    2 

एक या एक से अधिक वर्णो से बने सार्थक ध्वनि -समूह को शब्द कहते है

1 उतप्ति के आधार पर =
           उतप्ति एवं स्त्रोत के आधार पर भाषा में शब्दों को निम्न 4 उपभेदो में बाटा गया है

(i) तत्सम शब्द =
               किसी भाषा में प्रयुक्त उसकी मूल भाषा में शब्दों को तत्सम शब्द कहते है | हिंदी की मूल भाषा (संस्कृत )के वे शब्द ,जो हिंदी में ज्यो के त्यों प्रयुक्त होते है इन्हे तत्सम शब्द कहते है

  जैसे -अट्टालिका ,अर्पण ,आम्र ,उष्ट्र,कर्ण ,गर्दभ,

(ii)तदभव शब्द =
                 उच्चारण की सुविधानुसार संस्कृत के वे शब्द जिनका हिंदी में रूप परिवर्तित हो गया ,हिंदी में तद्भ्व शब्द कहलाते है
  जैसे -चंद्र से चाँद ,अग्नि से आग ,जिह्वा से जीभ आदि


तत्सम  एंव तदभव शब्दों की सूची








(iii) देशज शब्द
                सी भाषा में प्रचलित वे शब्द जो किसी जगह की जनता द्वारा आवश्यकतानुसार
 गढ़ लिए जाते है देशज शब्द कहलाते है अर्थात भाषा के अपने शब्दों को देशज शब्द कहते है साथ ही वे शब्द भी देशज की श्रेणी में आते है जिनके स्त्रोत का कोई पता नहीं है तथा हिंदी में  संस्कृतेतर भारतीय भाषाओ से आ गए है

 (अ) अपनी गढ़ंत से बने शब्द -
             उटपटांग,उधम अगोछ कंजड़ खटपट खचाखच खर्राटा खिड़की खुरपा गाडी गडगडाना गड़बड़ घेवर चम्मच चहचहाना चिमटा  चाट चुटकी चिंघाड़ना चट्टी छोहरा छल -छलाना झगड़ा टट्टू ठठेरा डगमगाना ढक्कन  ढांचा ढोर दीदी पटाखा परात पगड़ी पेट फटफट बड़बड़ाना बटलोई बाप बुद्धू बलबलाना मकई मिमियाना मुक्का लपलपाना लकड़ी लुग्दी लोटपोट लोटा हिनहिना

(आ) द्रविड़ जातियों की भाषा से आये देशज शब्द =
                                                 अनल कज्जल नीर पंडित माला कांच  कटी चिकना टाला लूँगी डोसा इडली

(i) कॉल संस्थाल आदि जातियों की भाषा से बने हिली के देशज शब्द =
                                                    कदली से केला कर्पास सरसो आदि शब्द देशज शब्द है
(ii) विदेशी शब्द =
                राजनीतिक ,आर्थिक धार्मिक एंव सांस्कृतिक कारणों से किसी भाषा में अन्य देशो की भाषा ओ  से भी शब्द आ जाती है उन्हें विदेशी शब्द कहती है

(i)  अंग्रेजी भाषा के शब्द =
                  अंडरवियर अल्मारी अस्पताल इंजीनियर एक्स-रे ऍम-पी क्लास क्लर्क कलेक्टर कॉपी कार कैमरा केस कोट क्रिकेट गार्ड टायर ट्यूब टीचर ट्रक डबल बैड डॉक्टर ड्राप्ट निब पोस्टकार्ड पेन प्लेटफार्म पाउडर आदि शब्द
(ii)अरबी शब्द =
             अक्ल अजबी अदालत आजाद आदमी इज्जत इलाज इन्तजार इनाम इस्तीफा औलाद कमाल कब्जा कानून कुर्सी किताब किस्मत कबीला कीमत गरीब  जनाब जलसा जुर्माना जिला तहसील  ताकत



          बाकी  अगले  पेज मे

Saturday, 29 July 2017

ALL INDIAN GK: rajasthan ASI HINDI

ALL INDIAN GK: rajasthan ASI HINDI : Varna Vichar, in the grammar of a language, from the int ...

rajasthan ASI HINDI part 1

                                                               वर्ण विचार 
किसी भाषा के व्याकरण ग्रंथ में इनतीन से तत्वों की विशेष एवं आवश्यक रूप  विवेचना  की  जाती है


 1 वर्ण 2 शब्द  3 वाक्य
1 हिंदी में वर्ण 44 होते है जिन्हे दो भागो में बाटा है स्वर और व्यजन 


1 स्वर =ऐसी ध्वनिया जिनको उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती  उन्हें स्वर कहते है
       स्वर 11 होते है अ,आ,इ ई उ ऊ ए ऐ ओ ोो ऋ
इन्हे दो  भागो  बाटा जा सकता है ह्स्व  एवं दीर्घ

जिन स्वरों के उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगे ,उन्हें ह्स्व स्वर एवं जिन स्वरों को बोलने में अधिक समय लगे  उन्हें दीर्घ स्वर कहते है

अत इन्हे सयुक्त स्वर भी कहते है

इनको मात्रा द्वारा भी दर्शया जा सकता है
 अ की कोई मात्रा नहीं
आ =ा
इ =ि
ई =ी
उ =ु
ऊ =ऊ
ए =े
ऐ =``
ओ =ो
ोो
ऋ=ृ
 व्यजन 
    जो ध्वनि स्वरों की सहायता से बोली जाती है उन्हें व्यजन कहते है
क वर्ग =क,ख ,ग ,घ (ड़ )
च वर्ग = च छः ज झ (
ट वर्ग =ट ठ ड  ढ (ण )
त वर्ग =त थ द ध (न)
प वर्ग =प फ ब भ (म)
अंतस्थ -य र ल व्
ऊष्म =श ष स ह

सयुक्त वर्ग  इनके अतिरिक्त हिंदी में तीन सयुक्त व्यजन भी होते है
क्ष -क+ष
त्र -त +र
ज़् +

हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर और 33 व्यजन कुल 44 वर्ण होते है 


वर्णो के उच्चारण का स्थान
वर्ण के नाम                                        उच्चारण स्थान          वर्ण की ध्वनि
1 अ आ क वर्ग                                   कंठ कोमल तालु             कंठ्य

2 इ ई च वर्ग                                         तालु                                तालव्य

3 ऋ ट वर्ग य श                                   मूर्ध्दा                             मूर्ध्दन्य

4 ल्र त वर्ग ल स                                  दन्त                               दन्त्य

5 उ  ऊ प वर्ग                                     ओष्ठ                             ओष्ठ्य

6 अ>ड़ >ण >न >म                           नासिका                          नासिक्य

7 ए ऐ                                                 कंठ तालु                         कंठ -तालव्य

8 ओ औ                                             कंठ ओष्ट                         कठोष्टय

9  व्                                                   दन्त ओष्ठ                     दन्तोष्ठ्य

10  ह                                                 स्वर यंत्र                           अलिजिह्वा


स्पर्शी =जिन व्यजनो के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वागयतर के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है निम्नलिखित व्यजन स्पर्शी है

 क ख ग घ       ट  ठ  ड़ ढ़ 
त थ द ध         प फ ब भ 

संघर्षी =जिन व्यजन के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते है की बीच  का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनसे घर्षण करती हुई निकलती है ऐसे संघर्षी व्यजन है

श ष स ह ख ज फ 

स्पर्शी संघर्षी = जिन व्यजन के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्ष्कृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग सघर्षी हो जाता  वे स्पर्श संघर्षी कहलाते है

च छ ज झ 

नासिक्य =जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुक अंश नाक से निकलता है
ड ञ् णं न म 

पार्शिवक =जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े  को छूता  है और वायु पाशर्व  आस पास  से निकल जाती है वे पार्श्विक है

ल 

प्रकम्पित +जिन व्यजनो के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन  करना पड़ता है

र 

उत्क्षिपत =जिनके उच्चारण में जिह्वा की नोक झटके से निचे गिरती है तो वह  उत्क्षिपत (फेका हुआ) ध्वनि कहलाती है

ड ढ़ 

सघर्ष हीन = जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकलती है वे संघर्ष हीन  ध्वनियों कहलाती है

य व् 
 इन्हे अर्धस्वर भी कहते है

घोष = घोष का अर्थ है नाद या गूंज | जिन वर्ण के उच्चारण करते समय गुंज होती है उन्हें घोष वर्ण कहते है

क  ख वर्ग व सभी वर्गो के अंतिम तीन वर्ण घोष 
ग  घ ड़ ज़ झ  आदि तथा य र ल व् ह घोष वर्ण कहलाते है

इसके अतिरिक्त सभी स्वर भी घोष होते है  इनकी कुल सख्या 33 होती है

अघोष = इन वर्णो के उच्चारण में प्राणवायु में कम्पन नहीं होता है अत: कोई गुज नहीं होती है व् अघोष वर्ण की होते है इनकी  सख्या 13  होती है

सभी वर्गो के पहले व् दूसरे वर्ण क ख च छ श ष  स  आदि सभी वर्ण अघोष है


श्वास वायु के आधार पर वर्णो के दो  भेद है =अल्प प्राण वह महाप्राण

अल्प प्राण =जिन वर्णो के उच्चारण में श्वास वायु कम मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है

क व् च वर्गो का पहला तीसरा और पांचवा  वर्ण (क,ग,ड़ ,च,ज,ट ,ड ,ठ ,द ,न,प,ब ,म,)तथा य र ल व् और सभी स्वर अल्प प्राण है

महाप्राण = जिन  वर्णो के उच्चारण में श्वास वायु अधिक मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है वह महाप्राण ध्वनिया कहते है
प्रत्येक वर्ण का दूसरा और चौथा वर्ण (ख़ घ छ झ ठ ढ़ थ ध फ भ ) तथा श ष स ह महाप्राण है


अनुनासिक =अनुनासिक ध्वनियाँ उच्चरण में नाक का सहयोग रहता है



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Monday, 13 February 2017

philosophy qustion answer part 1


  1. वैदिक साहित्य में ऋतू का अर्थ=-शाश्वत नैतिक ब्रह्माण्डीय व्यवस्था 
  2. वेदों का अंग है -वेद/सहिता,पुराण,ब्राह्मण,आरण्यक
  3. पुरषार्थ का सही क्रम है=धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष 
  4. उपनिषद शब्द का अर्थ है=गुरु के समीप बैठकर ज्ञान की प्रप्ति 
  5. उपनिषदों के अनुसार सबसे उपयुक्त आदर्श है=मोक्ष 
  6. एकेश्वरवाद का अर्थ है=केवल एक ही ईश्वर की सता में विशवास करना 
  7. चारो आश्रमो का उल्लेख सर्वप्रथम किस उपनिषद में किया=जाबलोउपनिषद 
  8. वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था में सम्मिलित नही है=प्रजातांत्रिक समानता 
  9. उपनिषदों को वेदांत इसलिए कहा जाता है,क्योकि=ये वेदों का अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है 
  10. वेद और उपनिषदों में प्रमुख अंतर है=ये वेदों के अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है 
  11. अधिकांश दर्शनों के अनुसार परम पुरुषर्थ=मोक्ष 
  12. आश्रम धर्म का अर्थ है=आयु वर्ग के अनुसार कर्तव्यों का पालन करना 
  13. पुरुषार्थ व्यवस्था में निम्न में से किस पुरुषार्थ को साधन पुरुषार्थ के रूप में मान्यता दी है =धर्म,अर्थ,काम 
  14. निवृति मार्ग के अनुसार कौनसा आश्रम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है=सन्यासी 
  15. गीता के अनुसार वर्णाआश्रम धर्म का आधार क्या है=गुण व् धर्म 
  16. मैक्समूलर के एकाधिदेववाद का अर्थ है=एक देवता का परम के रूप में उन्नयन 
  17. ऋतु के वैदिक सिध्दांत का तापर्य है=विश्व की नियमबध्दता 
  18. वेद प्रवृति मार्ग है जबकि उपनिषद है=कर्म मार्गी 
  19. त्रिवर्ग का क्या अर्थ है=धर्म,अर्थ,काम 
  20. प्रथम पुरुषार्थ है=धर्म                                                                                                                                                                                                                                                                                    पाठको से निवेदन है अगर आप लोगो को पसन्द आए तो आपकी राय जरूर लिखे                                        BY HASTRAM MEENA