- वैदिक साहित्य में ऋतू का अर्थ=-शाश्वत नैतिक ब्रह्माण्डीय व्यवस्था
- वेदों का अंग है -वेद/सहिता,पुराण,ब्राह्मण,आरण्यक
- पुरषार्थ का सही क्रम है=धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष
- उपनिषद शब्द का अर्थ है=गुरु के समीप बैठकर ज्ञान की प्रप्ति
- उपनिषदों के अनुसार सबसे उपयुक्त आदर्श है=मोक्ष
- एकेश्वरवाद का अर्थ है=केवल एक ही ईश्वर की सता में विशवास करना
- चारो आश्रमो का उल्लेख सर्वप्रथम किस उपनिषद में किया=जाबलोउपनिषद
- वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था में सम्मिलित नही है=प्रजातांत्रिक समानता
- उपनिषदों को वेदांत इसलिए कहा जाता है,क्योकि=ये वेदों का अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है
- वेद और उपनिषदों में प्रमुख अंतर है=ये वेदों के अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है
- अधिकांश दर्शनों के अनुसार परम पुरुषर्थ=मोक्ष
- आश्रम धर्म का अर्थ है=आयु वर्ग के अनुसार कर्तव्यों का पालन करना
- पुरुषार्थ व्यवस्था में निम्न में से किस पुरुषार्थ को साधन पुरुषार्थ के रूप में मान्यता दी है =धर्म,अर्थ,काम
- निवृति मार्ग के अनुसार कौनसा आश्रम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है=सन्यासी
- गीता के अनुसार वर्णाआश्रम धर्म का आधार क्या है=गुण व् धर्म
- मैक्समूलर के एकाधिदेववाद का अर्थ है=एक देवता का परम के रूप में उन्नयन
- ऋतु के वैदिक सिध्दांत का तापर्य है=विश्व की नियमबध्दता
- वेद प्रवृति मार्ग है जबकि उपनिषद है=कर्म मार्गी
- त्रिवर्ग का क्या अर्थ है=धर्म,अर्थ,काम
- प्रथम पुरुषार्थ है=धर्म पाठको से निवेदन है अगर आप लोगो को पसन्द आए तो आपकी राय जरूर लिखे BY HASTRAM MEENA
Monday, 13 February 2017
philosophy qustion answer part 1
philosophy ncrt notes 2
1 देववाद का विकास
वैदिक सहिताओ के आधार पर मैक्समूलर आदि विद्वान् ने ईश्वर एव देववाद का स्थूल से सूक्ष्म की और विकास का उल्लेख करते है
(ई)बहुदेववाद
यह वेदों में निहित देववाद के विकास क्रम के प्रारम्भिक एवं स्थूलतम अवधारण है
इनके प्रत्येक मानवीय गुण का अनन्त बनाकर प्राकृतिक शक्तियों मव स्थापित क्र दिया गया है इसे ही देववाद कहते है इसमें 33 करोड़ देवी-देवता है जैसे-इंद्र,वरुण,सूर्य,अग्नि,मारुत,अशिवन आदि है
यास्क ने स्थान की दृष्टि से तीन भागो में वर्गीकरण किया है
(I) पृथ्वी -पृथ्वी पर अग्नि का स्थान सर्वोच्च नामा है इसके अलावा - सोम,पृथ्वी,सरस्वती.ब्रहस्पति,आदि है
(II)अंतरिक्ष -इनमे इंद्र का स्थान प्रमुख है व् इसके अलावा- रूद्र,मरुत,वायु,मातरिश्वन,पर्जन्य
(iii )घु=सूर्य,सविता/सवितृविष्णु,पूषण चंद्रमा मित्र,वरुन आदि प्रमुख है
2 एकाधिदेववाद/एकेशतेश्वरवाद
एकाधिदेववाद में एकत्व स्थपित करने का प्रथम प्रयास है जिसमे समय अवसर और आवश्यकता विशेष पर किसी एक देवता को स्तुति में परम् देवता के रूप में महत्व दिया जाने लगा
इसमें जिस देवता की आवश्यकता होती थी उसे ही महत्व दिया जाता है
यह बहुदेववाद एम् एकेश्वरवाद की मध्य की कड़ी है जिसे मैक्समूलर ने हीनोथीज्म की सज्ञा गई है 3 एकेश्वरवाद
एकेश्वरवाद एकाधिदेवाद की आपेक्षा सूक्ष्म अवधारणा है
वैदिक सहिताओ के आधार पर मैक्समूलर आदि विद्वान् ने ईश्वर एव देववाद का स्थूल से सूक्ष्म की और विकास का उल्लेख करते है
(ई)बहुदेववाद
यह वेदों में निहित देववाद के विकास क्रम के प्रारम्भिक एवं स्थूलतम अवधारण है
इनके प्रत्येक मानवीय गुण का अनन्त बनाकर प्राकृतिक शक्तियों मव स्थापित क्र दिया गया है इसे ही देववाद कहते है इसमें 33 करोड़ देवी-देवता है जैसे-इंद्र,वरुण,सूर्य,अग्नि,मारुत,अशिवन आदि है
यास्क ने स्थान की दृष्टि से तीन भागो में वर्गीकरण किया है
(I) पृथ्वी -पृथ्वी पर अग्नि का स्थान सर्वोच्च नामा है इसके अलावा - सोम,पृथ्वी,सरस्वती.ब्रहस्पति,आदि है
(II)अंतरिक्ष -इनमे इंद्र का स्थान प्रमुख है व् इसके अलावा- रूद्र,मरुत,वायु,मातरिश्वन,पर्जन्य
(iii )घु=सूर्य,सविता/सवितृविष्णु,पूषण चंद्रमा मित्र,वरुन आदि प्रमुख है
2 एकाधिदेववाद/एकेशतेश्वरवाद
एकाधिदेववाद में एकत्व स्थपित करने का प्रथम प्रयास है जिसमे समय अवसर और आवश्यकता विशेष पर किसी एक देवता को स्तुति में परम् देवता के रूप में महत्व दिया जाने लगा
इसमें जिस देवता की आवश्यकता होती थी उसे ही महत्व दिया जाता है
यह बहुदेववाद एम् एकेश्वरवाद की मध्य की कड़ी है जिसे मैक्समूलर ने हीनोथीज्म की सज्ञा गई है 3 एकेश्वरवाद
एकेश्वरवाद एकाधिदेवाद की आपेक्षा सूक्ष्म अवधारणा है
Sunday, 12 February 2017
vaidik darshanv
- वेद शब्द का अर्थ जानना होता है
- महृषि वेदव्यास द्धारा वेदों का वर्गीकरण किया गया है
- कर्मकाण्ड का उद्देश्य सुखो की प्रप्ति व् स्वर्ग की प्रप्ति है कर्मकाण्ड के तीन भाग
- सहिता =यह सरल रूप प्रदशित करती है
- मंत्र =देवतो की स्तुति करने लिए प्रयुक्त वाक्यो को मन्त्र कहते है या गध्यात्मक और पद्यात्मक रूप में सकलन है
- ऋग्वेद =यह सबसे प्राचीन व् बड़ी सहिता है इससे सम्बधित पुरोहितो को होतृ कहा जाता है
- यजुर्वेद =इसका शब्दिक अर्थ है -यज यह चम्पू शैली में है इससे सम्बंधनित पुरोहितो को अध्वर्यु कहते है
- सामवेद =यह सगीत से सम्बन्धित है इससे सम्बधित पुरोहितो को उद्गाता कहते है
- अथर्वेद =यह जादू,टोना,कर्षि ,सिचाई ,चिकित्सा ,राजनीती आदि से सम्बधित है इससे सम्बधित पुरोहितो को ब्राम्हण कहते है
- त्रयी या वेदत्रयी =ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद कोकहते है ब्राह्मन
- ऋग्वेद -ऐतरेय ,कौषीतकि
- यजुर्वेद=शतपत तैतरीय
- सामवेद=पंचविश षडविष,जैमिनी,अद्भत
- अर्थवेद=गोपथ आरण्यक
- एकांत में बैठ कर लिखे गए ग्रंथो को आरण्यक कहते है यह यजो की विश्श्लेणात्मक व्याख्या करते है इन्हें कर्मकांड व् ज्ञानकाण्ड की मध्य की कड़ी है ज्ञानकाण्ड (उपनिषद)
- उपनिषद वेदों का अंतिम भाग है
- ज्ञानकाण्ड का अंतिम उदेश्य आत्माश्क्षात्कार या मोक्ष की प्रप्ति वह गुरु के समीप बैठकर अपने अज्ञान का निवारण करना अर्थात ज्ञान की प्रप्ति करना by हस्त राम मीना
Saturday, 11 February 2017
philosophy ncert lesson 1
भारतीय दर्शन की परिभाषा
दर्शन शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के द्रश्य धातु से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ देखना यहाँ देखने से तातपर्य "जानने ,साक्षात्कार करने अनुभूति करने करने से है
जो देखा या जाना वह दर्शन है
Philosophy शब्द ग्रीक भाषा के philos और sophia शब्दो के योग से बना है फिलोस का अर्थ -प्रेम। अनुराग या आकर्षण होता है वही sophia का अर्थ ज्ञान होता है अर्थात -ज्ञान के प्रति प्रेम ,अनुराग होता उसे philosophy कहलाती है
- मौलिकता =वह तत्व जो अपने आप नया हो मौलिक कहलाता है भारत का दर्शन विश्व का सबसे प्रचीन दर्शन है
- दु ;ख से उत्पति -भारतीय दर्शन दु ;ख व समस्या से उत्पन बताया है
- भारतीय दर्शन में तीन प्रकार के दु ;ख है (i)भौतिक (ii)शारीरिक (iii)दैविक
- भारतीय दर्शन का उदेश्य =भारतीय दर्शन की उत्पति दु ;ख से हुई है इसीलए दु ;खो की आत्यन्तिक निवर्ति ही भारतीय दर्शन का उद्देश्य है इसे ही मोक्ष कहा जाता है
- (अ )मोक्ष -आत्म -ज्ञान का उदय (ब )अज्ञान का निवारण (स)दु;खो की पूर्णतः समाप्ति (द)जन्म-मरण चक्र की समाप्ति (त)अखण्ड़ आनन्द की अनुभूति
- आध्यत्मिक प्रवर्ति = आत्मा (मैं) पर केंद्रित होना आध्यात्मिक कहलाता है भारतीय दर्शन आत्मा की सता को स्वीकार करता है भारतीय दर्शन- चार्वाकवाद आत्मा की सत्ता को स्वीकार नही करता है
- व्यावहारिकता =किसी भी विषय का जीवन से जोड़ा होना उसे व्यावहारिक बनाता है
- श्रवण, मनन निदिध्यासन (आ)श्रवण -गुरु के उपदेशो को श्रध्दापूर्वक सुनना श्रवण है यह ह्रदय पक्ष को सूचित करता है (बी)मनन =गुरु के उपदेशो का तार्किक चिन्तन मनन कहलाता है मनन -बौद्धिक पक्ष को सूचित करता है (डी)निदिध्यासन =मनन से निष्कर्षित सत्यो का जीवन में अभ्यास करना निदिध्यासन कहलाता है यह क्रियात्मक पक्ष सूचित करता है
- आशावादिता =भारतीय दर्शन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है और भारतीय दर्शन निराशावादी न होकर आशावादी है
- कर्मवाद में विश्वास =भारतीय सभी दर्शन कर्मवाद में विशवास करते है केवल चर्वाकवाद इस में विश्वास नही करता है
- भारतीय नीतिशात्र में तीन प्रकार के कर्म मने गये है (आ)सचित कर्म =पूर्व जन्मो में किए गया ऐसे कर्म जिनका फल मिलना प्रारम्भ नही हुआ है वः सचित कर्म कहलाते है (डी)प्रारब्ध =पूर्व जन्मो में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल प्रारम्भ हो गए है उन प्रारब्ध कर्म कहलाता है (फ)सचीयमान कर्म =इन्हें क्रियमान क्रम भी कहते है वर्तमान जीवन में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल भविष्य के लिए सचित हो जाते है सचियमन कहलाते है
- वास्तव में सचित कर्म ही जब फल देना प्रारम्भ क्र देते है तब प्रारब्ध कर्म कहलाते आई भारतीय दर्शन का स्वरूप १ आस्तिक =(i )वेदानुकूल=(ई)साख्य ,योग ,न्याय ,वैशेषिक (ईई )वैदिक =मीमांसा ,वेदांत 2 नास्तिक =चावार्क ,जैन बौध्द
- आस्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार करते है
- नास्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार नही करते है चार्वाक ,जैन ,बौध्द
- साख्य दर्शन =कपिल मुनि यह सबसे प्राचीन आस्तिक दर्शन है
- योग दर्शन =पतंजिल इसकी साधना पध्दति अष्टगिक योग कहलाती है 1 यम २ नियम 3 आसन 4 प्राणायाम 5 प्रत्याहार 6 धारणा 7 ध्यान 8 समाधि (प्रारम्भिक पाँच बहिरंग एवं तीन अंतरंग योग कहलाते है
- न्याय दर्शन =गौतम या तर्क पध्दति की लिए प्रसिद्ध है गौतम ने इसे अक्षपाद खा है कौटिल्य ने इसको आन्वीक्षकी कहा है
- वैशेषिक =कणाद इसको औलूक्य दर्शन भी कहते है कणाद को उलूक भी कहते है
- मीमांसा =जैमिनी कर्मकाण्ड को स्वीकार करता है
- विदात =बादरायण ज्ञानकाण्ड को स्वीकार करता है ये दर्शन आस्तिक तथा इन्हें के सम्मिलित रूप को षड्दर्शन कहा जाता है
- मीमांसा वह साख्य ऐसे नास्तिक दर्शन है जो ईश्वर के अस्तिव को स्वीकार नही करते है BY हस्त राम मीना
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