भारतीय दर्शन की परिभाषा
दर्शन शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के द्रश्य धातु से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ देखना यहाँ देखने से तातपर्य "जानने ,साक्षात्कार करने अनुभूति करने करने से है
जो देखा या जाना वह दर्शन है
Philosophy शब्द ग्रीक भाषा के philos और sophia शब्दो के योग से बना है फिलोस का अर्थ -प्रेम। अनुराग या आकर्षण होता है वही sophia का अर्थ ज्ञान होता है अर्थात -ज्ञान के प्रति प्रेम ,अनुराग होता उसे philosophy कहलाती है
- मौलिकता =वह तत्व जो अपने आप नया हो मौलिक कहलाता है भारत का दर्शन विश्व का सबसे प्रचीन दर्शन है
- दु ;ख से उत्पति -भारतीय दर्शन दु ;ख व समस्या से उत्पन बताया है
- भारतीय दर्शन में तीन प्रकार के दु ;ख है (i)भौतिक (ii)शारीरिक (iii)दैविक
- भारतीय दर्शन का उदेश्य =भारतीय दर्शन की उत्पति दु ;ख से हुई है इसीलए दु ;खो की आत्यन्तिक निवर्ति ही भारतीय दर्शन का उद्देश्य है इसे ही मोक्ष कहा जाता है
- (अ )मोक्ष -आत्म -ज्ञान का उदय (ब )अज्ञान का निवारण (स)दु;खो की पूर्णतः समाप्ति (द)जन्म-मरण चक्र की समाप्ति (त)अखण्ड़ आनन्द की अनुभूति
- आध्यत्मिक प्रवर्ति = आत्मा (मैं) पर केंद्रित होना आध्यात्मिक कहलाता है भारतीय दर्शन आत्मा की सता को स्वीकार करता है भारतीय दर्शन- चार्वाकवाद आत्मा की सत्ता को स्वीकार नही करता है
- व्यावहारिकता =किसी भी विषय का जीवन से जोड़ा होना उसे व्यावहारिक बनाता है
- श्रवण, मनन निदिध्यासन (आ)श्रवण -गुरु के उपदेशो को श्रध्दापूर्वक सुनना श्रवण है यह ह्रदय पक्ष को सूचित करता है (बी)मनन =गुरु के उपदेशो का तार्किक चिन्तन मनन कहलाता है मनन -बौद्धिक पक्ष को सूचित करता है (डी)निदिध्यासन =मनन से निष्कर्षित सत्यो का जीवन में अभ्यास करना निदिध्यासन कहलाता है यह क्रियात्मक पक्ष सूचित करता है
- आशावादिता =भारतीय दर्शन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है और भारतीय दर्शन निराशावादी न होकर आशावादी है
- कर्मवाद में विश्वास =भारतीय सभी दर्शन कर्मवाद में विशवास करते है केवल चर्वाकवाद इस में विश्वास नही करता है
- भारतीय नीतिशात्र में तीन प्रकार के कर्म मने गये है (आ)सचित कर्म =पूर्व जन्मो में किए गया ऐसे कर्म जिनका फल मिलना प्रारम्भ नही हुआ है वः सचित कर्म कहलाते है (डी)प्रारब्ध =पूर्व जन्मो में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल प्रारम्भ हो गए है उन प्रारब्ध कर्म कहलाता है (फ)सचीयमान कर्म =इन्हें क्रियमान क्रम भी कहते है वर्तमान जीवन में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल भविष्य के लिए सचित हो जाते है सचियमन कहलाते है
- वास्तव में सचित कर्म ही जब फल देना प्रारम्भ क्र देते है तब प्रारब्ध कर्म कहलाते आई भारतीय दर्शन का स्वरूप १ आस्तिक =(i )वेदानुकूल=(ई)साख्य ,योग ,न्याय ,वैशेषिक (ईई )वैदिक =मीमांसा ,वेदांत 2 नास्तिक =चावार्क ,जैन बौध्द
- आस्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार करते है
- नास्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार नही करते है चार्वाक ,जैन ,बौध्द
- साख्य दर्शन =कपिल मुनि यह सबसे प्राचीन आस्तिक दर्शन है
- योग दर्शन =पतंजिल इसकी साधना पध्दति अष्टगिक योग कहलाती है 1 यम २ नियम 3 आसन 4 प्राणायाम 5 प्रत्याहार 6 धारणा 7 ध्यान 8 समाधि (प्रारम्भिक पाँच बहिरंग एवं तीन अंतरंग योग कहलाते है
- न्याय दर्शन =गौतम या तर्क पध्दति की लिए प्रसिद्ध है गौतम ने इसे अक्षपाद खा है कौटिल्य ने इसको आन्वीक्षकी कहा है
- वैशेषिक =कणाद इसको औलूक्य दर्शन भी कहते है कणाद को उलूक भी कहते है
- मीमांसा =जैमिनी कर्मकाण्ड को स्वीकार करता है
- विदात =बादरायण ज्ञानकाण्ड को स्वीकार करता है ये दर्शन आस्तिक तथा इन्हें के सम्मिलित रूप को षड्दर्शन कहा जाता है
- मीमांसा वह साख्य ऐसे नास्तिक दर्शन है जो ईश्वर के अस्तिव को स्वीकार नही करते है BY हस्त राम मीना
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