Monday, 13 February 2017

philosophy ncrt notes 2

             1 देववाद का विकास 
वैदिक सहिताओ के आधार पर मैक्समूलर आदि विद्वान् ने ईश्वर एव देववाद का स्थूल से सूक्ष्म की और विकास का उल्लेख करते है 
                        (ई)बहुदेववाद 
यह वेदों में निहित देववाद के विकास क्रम के प्रारम्भिक एवं स्थूलतम अवधारण है 
  इनके प्रत्येक मानवीय गुण का अनन्त बनाकर प्राकृतिक शक्तियों मव स्थापित क्र दिया गया है इसे ही देववाद कहते है इसमें 33 करोड़ देवी-देवता है जैसे-इंद्र,वरुण,सूर्य,अग्नि,मारुत,अशिवन आदि है 
      
  यास्क ने स्थान की दृष्टि से तीन भागो में वर्गीकरण किया है 
 (I) पृथ्वी -पृथ्वी पर अग्नि का स्थान सर्वोच्च नामा है इसके अलावा  -                        सोम,पृथ्वी,सरस्वती.ब्रहस्पति,आदि है 
(II)अंतरिक्ष -इनमे इंद्र का स्थान प्रमुख है व् इसके अलावा-                                          रूद्र,मरुत,वायु,मातरिश्वन,पर्जन्य 
(iii )घु=सूर्य,सविता/सवितृविष्णु,पूषण चंद्रमा मित्र,वरुन आदि प्रमुख है 
                  2 एकाधिदेववाद/एकेशतेश्वरवाद 
एकाधिदेववाद में एकत्व स्थपित करने का प्रथम प्रयास है जिसमे समय अवसर और आवश्यकता विशेष पर किसी  एक देवता को स्तुति में परम् देवता  के रूप में महत्व दिया जाने लगा 
 इसमें जिस देवता की आवश्यकता होती थी उसे ही महत्व दिया जाता है 
  
यह बहुदेववाद एम् एकेश्वरवाद की मध्य की कड़ी है जिसे मैक्समूलर ने हीनोथीज्म की सज्ञा गई है                                                                                              3 एकेश्वरवाद 
एकेश्वरवाद एकाधिदेवाद की आपेक्षा सूक्ष्म अवधारणा है 

No comments:

Post a Comment