Sunday, 30 July 2017

भाग -2 का बाकी


 अरबी शब्द =
         तूफान तराजू तमाशा दुनिया दफतर दौलत नतीजा नशा नकदफ़क़ीर फैसला बहस मदद मतलब लिफाफा शादी शंतरज हलवाई हुक्म

फारसी के शब्द =
           अखबार अमरुद आराम आवारा आसमान आतिशबाजी आमदनी कमर कारीगर कमीना कुश्ती खराब खर्च खून खुश्क गवाह गुब्बारा गुलाब जानवर जेब जगह जमीन जलेबी तनख्वाह तबाह दर्जी दवा दरवाजा दीवार नमक नेक बीमार मजदूर मलाई यार लगाम शेर सूखा सौदागर आदि शब्द

पुर्तगाली शब्द =
       अचार अगस्त आलपिन आलू आया अन्नानास इस्पात कनस्तर कारबन कमीज कमरा गमला गोभी गोदाम चाबी पादरी पिस्तौल बाल्टी मेज संतरा साबुन आदि शब्द

संकर शब्द=
           हिंदी के वे शब्द जो अलग- अलग भाषाओ को मिलाकर बना लिए गये है उन्हें संकर शब्द कहते है
अग्नि बोट          अग्नि (संस्कृत)  +  बोट (अंग्रेजी)
टिकिट -घर         टिकिट (अंग्रेजी) + घर  (हिंदी )
कवि -दरबार        कवि  (हिंदी )      +दरबार (फ़ारसी)
नेक -नीयत        नेक     (फ़ारसी)   + नीयत (अरबी )  आदि शब्द संकर शब्द है


रचना के आधार पर =
     शब्दों की रचना प्रक्रिया के आधार पर हिंदी भाषा के शब्दों के तीन भेद किये जाते  है

  1  रूढ़ शब्द                   2    यौगिक शब्द         3 योग शब्द


1  रूढ़ शब्द =
             वे शब्द जो किसी व्यक्ति स्थान प्राणी और वस्तु के लिए वर्षो से प्रयुक्त होने के कारण किसी विशिष्ट अर्थ में प्रचलित हो गए है 'रूढ़ शब्द 'कहलाते है
  दूध ,गाय, रोटी ,सिंक, पेड़, पत्थर, देवता आकाश, मेंढ़क ,स्त्री ,

2  यौगिक शब्द =
                वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने है उन शब्दों का अपना पृथक अर्थ भी होता है किन्तु वे मिलकर अपने मूल शब्द से संबधित या अन्य किसी नये अर्थ का बोध कराते है यौगिक  शब्द कहलाते है
       समस्त संधि समास उपसर्ग तथा प्रत्यय से बने शब्द यौगिक  शब्द कहलाते है

 विधायल,प्रेमसागर,प्रतिदिन,दूधवाला,राजमाता,ईश्वर-प्रदत,राष्टपति,महर्षि,कृष्णर्पण,चिड़ीमार,

3 योगरूढ़ शब्द=
         वे यौगिक शब्द जिनका निर्माण पृथक ,पृथक अर्थ देने वाले शब्दों के योग से होता है किन्तु वे अपने द्वारा प्रतिपादित अनेक अर्थो में से किसी एक विशेष अर्थ के लिए ही प्रतिपादित होकर रूढ़ ही गये  ऐसे शब्दों को योगरूढ़ शब्द कहलाते है
     पीताम्बर,शब्द पीत और अम्बर ,के योग से बना है गजानन  षडानन ,लम्बोदर,त्रिनेत्र,घनश्याम,विषधर,चक्रधर,दशानन,मुरारी,जलज,जलद ,आदि शब्द

मुख्य प्रश्न 

1 निम्नलिखित में तत्सम शब्द कौनसा है
      i  उल्लू             ii  ऊंट   iii गधा    iv  घोटक

2   निम्नलिखित  तद्भव शब्द कौनसा है
       i  अग्नि    ii ईख    iii   दधि    iv  नयन

3  निम्न में से देशज शब्द कौनसा है
     i  घेवर    ii  मिष्टान्न   iii बैल  iv   खीर

4  योगरूढ़ शब्द का चयन कीजिए
     i आकाश  ii गजानन iii  विधायल iv  दूधवाला




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rajasthan SI HINDI part 2

                                शब्द विचार    2 

एक या एक से अधिक वर्णो से बने सार्थक ध्वनि -समूह को शब्द कहते है

1 उतप्ति के आधार पर =
           उतप्ति एवं स्त्रोत के आधार पर भाषा में शब्दों को निम्न 4 उपभेदो में बाटा गया है

(i) तत्सम शब्द =
               किसी भाषा में प्रयुक्त उसकी मूल भाषा में शब्दों को तत्सम शब्द कहते है | हिंदी की मूल भाषा (संस्कृत )के वे शब्द ,जो हिंदी में ज्यो के त्यों प्रयुक्त होते है इन्हे तत्सम शब्द कहते है

  जैसे -अट्टालिका ,अर्पण ,आम्र ,उष्ट्र,कर्ण ,गर्दभ,

(ii)तदभव शब्द =
                 उच्चारण की सुविधानुसार संस्कृत के वे शब्द जिनका हिंदी में रूप परिवर्तित हो गया ,हिंदी में तद्भ्व शब्द कहलाते है
  जैसे -चंद्र से चाँद ,अग्नि से आग ,जिह्वा से जीभ आदि


तत्सम  एंव तदभव शब्दों की सूची








(iii) देशज शब्द
                सी भाषा में प्रचलित वे शब्द जो किसी जगह की जनता द्वारा आवश्यकतानुसार
 गढ़ लिए जाते है देशज शब्द कहलाते है अर्थात भाषा के अपने शब्दों को देशज शब्द कहते है साथ ही वे शब्द भी देशज की श्रेणी में आते है जिनके स्त्रोत का कोई पता नहीं है तथा हिंदी में  संस्कृतेतर भारतीय भाषाओ से आ गए है

 (अ) अपनी गढ़ंत से बने शब्द -
             उटपटांग,उधम अगोछ कंजड़ खटपट खचाखच खर्राटा खिड़की खुरपा गाडी गडगडाना गड़बड़ घेवर चम्मच चहचहाना चिमटा  चाट चुटकी चिंघाड़ना चट्टी छोहरा छल -छलाना झगड़ा टट्टू ठठेरा डगमगाना ढक्कन  ढांचा ढोर दीदी पटाखा परात पगड़ी पेट फटफट बड़बड़ाना बटलोई बाप बुद्धू बलबलाना मकई मिमियाना मुक्का लपलपाना लकड़ी लुग्दी लोटपोट लोटा हिनहिना

(आ) द्रविड़ जातियों की भाषा से आये देशज शब्द =
                                                 अनल कज्जल नीर पंडित माला कांच  कटी चिकना टाला लूँगी डोसा इडली

(i) कॉल संस्थाल आदि जातियों की भाषा से बने हिली के देशज शब्द =
                                                    कदली से केला कर्पास सरसो आदि शब्द देशज शब्द है
(ii) विदेशी शब्द =
                राजनीतिक ,आर्थिक धार्मिक एंव सांस्कृतिक कारणों से किसी भाषा में अन्य देशो की भाषा ओ  से भी शब्द आ जाती है उन्हें विदेशी शब्द कहती है

(i)  अंग्रेजी भाषा के शब्द =
                  अंडरवियर अल्मारी अस्पताल इंजीनियर एक्स-रे ऍम-पी क्लास क्लर्क कलेक्टर कॉपी कार कैमरा केस कोट क्रिकेट गार्ड टायर ट्यूब टीचर ट्रक डबल बैड डॉक्टर ड्राप्ट निब पोस्टकार्ड पेन प्लेटफार्म पाउडर आदि शब्द
(ii)अरबी शब्द =
             अक्ल अजबी अदालत आजाद आदमी इज्जत इलाज इन्तजार इनाम इस्तीफा औलाद कमाल कब्जा कानून कुर्सी किताब किस्मत कबीला कीमत गरीब  जनाब जलसा जुर्माना जिला तहसील  ताकत



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Saturday, 29 July 2017

ALL INDIAN GK: rajasthan ASI HINDI

ALL INDIAN GK: rajasthan ASI HINDI : Varna Vichar, in the grammar of a language, from the int ...

rajasthan ASI HINDI part 1

                                                               वर्ण विचार 
किसी भाषा के व्याकरण ग्रंथ में इनतीन से तत्वों की विशेष एवं आवश्यक रूप  विवेचना  की  जाती है


 1 वर्ण 2 शब्द  3 वाक्य
1 हिंदी में वर्ण 44 होते है जिन्हे दो भागो में बाटा है स्वर और व्यजन 


1 स्वर =ऐसी ध्वनिया जिनको उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती  उन्हें स्वर कहते है
       स्वर 11 होते है अ,आ,इ ई उ ऊ ए ऐ ओ ोो ऋ
इन्हे दो  भागो  बाटा जा सकता है ह्स्व  एवं दीर्घ

जिन स्वरों के उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगे ,उन्हें ह्स्व स्वर एवं जिन स्वरों को बोलने में अधिक समय लगे  उन्हें दीर्घ स्वर कहते है

अत इन्हे सयुक्त स्वर भी कहते है

इनको मात्रा द्वारा भी दर्शया जा सकता है
 अ की कोई मात्रा नहीं
आ =ा
इ =ि
ई =ी
उ =ु
ऊ =ऊ
ए =े
ऐ =``
ओ =ो
ोो
ऋ=ृ
 व्यजन 
    जो ध्वनि स्वरों की सहायता से बोली जाती है उन्हें व्यजन कहते है
क वर्ग =क,ख ,ग ,घ (ड़ )
च वर्ग = च छः ज झ (
ट वर्ग =ट ठ ड  ढ (ण )
त वर्ग =त थ द ध (न)
प वर्ग =प फ ब भ (म)
अंतस्थ -य र ल व्
ऊष्म =श ष स ह

सयुक्त वर्ग  इनके अतिरिक्त हिंदी में तीन सयुक्त व्यजन भी होते है
क्ष -क+ष
त्र -त +र
ज़् +

हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर और 33 व्यजन कुल 44 वर्ण होते है 


वर्णो के उच्चारण का स्थान
वर्ण के नाम                                        उच्चारण स्थान          वर्ण की ध्वनि
1 अ आ क वर्ग                                   कंठ कोमल तालु             कंठ्य

2 इ ई च वर्ग                                         तालु                                तालव्य

3 ऋ ट वर्ग य श                                   मूर्ध्दा                             मूर्ध्दन्य

4 ल्र त वर्ग ल स                                  दन्त                               दन्त्य

5 उ  ऊ प वर्ग                                     ओष्ठ                             ओष्ठ्य

6 अ>ड़ >ण >न >म                           नासिका                          नासिक्य

7 ए ऐ                                                 कंठ तालु                         कंठ -तालव्य

8 ओ औ                                             कंठ ओष्ट                         कठोष्टय

9  व्                                                   दन्त ओष्ठ                     दन्तोष्ठ्य

10  ह                                                 स्वर यंत्र                           अलिजिह्वा


स्पर्शी =जिन व्यजनो के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वागयतर के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है निम्नलिखित व्यजन स्पर्शी है

 क ख ग घ       ट  ठ  ड़ ढ़ 
त थ द ध         प फ ब भ 

संघर्षी =जिन व्यजन के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते है की बीच  का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनसे घर्षण करती हुई निकलती है ऐसे संघर्षी व्यजन है

श ष स ह ख ज फ 

स्पर्शी संघर्षी = जिन व्यजन के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्ष्कृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग सघर्षी हो जाता  वे स्पर्श संघर्षी कहलाते है

च छ ज झ 

नासिक्य =जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुक अंश नाक से निकलता है
ड ञ् णं न म 

पार्शिवक =जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े  को छूता  है और वायु पाशर्व  आस पास  से निकल जाती है वे पार्श्विक है

ल 

प्रकम्पित +जिन व्यजनो के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन  करना पड़ता है

र 

उत्क्षिपत =जिनके उच्चारण में जिह्वा की नोक झटके से निचे गिरती है तो वह  उत्क्षिपत (फेका हुआ) ध्वनि कहलाती है

ड ढ़ 

सघर्ष हीन = जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकलती है वे संघर्ष हीन  ध्वनियों कहलाती है

य व् 
 इन्हे अर्धस्वर भी कहते है

घोष = घोष का अर्थ है नाद या गूंज | जिन वर्ण के उच्चारण करते समय गुंज होती है उन्हें घोष वर्ण कहते है

क  ख वर्ग व सभी वर्गो के अंतिम तीन वर्ण घोष 
ग  घ ड़ ज़ झ  आदि तथा य र ल व् ह घोष वर्ण कहलाते है

इसके अतिरिक्त सभी स्वर भी घोष होते है  इनकी कुल सख्या 33 होती है

अघोष = इन वर्णो के उच्चारण में प्राणवायु में कम्पन नहीं होता है अत: कोई गुज नहीं होती है व् अघोष वर्ण की होते है इनकी  सख्या 13  होती है

सभी वर्गो के पहले व् दूसरे वर्ण क ख च छ श ष  स  आदि सभी वर्ण अघोष है


श्वास वायु के आधार पर वर्णो के दो  भेद है =अल्प प्राण वह महाप्राण

अल्प प्राण =जिन वर्णो के उच्चारण में श्वास वायु कम मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है

क व् च वर्गो का पहला तीसरा और पांचवा  वर्ण (क,ग,ड़ ,च,ज,ट ,ड ,ठ ,द ,न,प,ब ,म,)तथा य र ल व् और सभी स्वर अल्प प्राण है

महाप्राण = जिन  वर्णो के उच्चारण में श्वास वायु अधिक मात्रा में मुख विवर से बाहर निकलती है वह महाप्राण ध्वनिया कहते है
प्रत्येक वर्ण का दूसरा और चौथा वर्ण (ख़ घ छ झ ठ ढ़ थ ध फ भ ) तथा श ष स ह महाप्राण है


अनुनासिक =अनुनासिक ध्वनियाँ उच्चरण में नाक का सहयोग रहता है



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Monday, 13 February 2017

philosophy qustion answer part 1


  1. वैदिक साहित्य में ऋतू का अर्थ=-शाश्वत नैतिक ब्रह्माण्डीय व्यवस्था 
  2. वेदों का अंग है -वेद/सहिता,पुराण,ब्राह्मण,आरण्यक
  3. पुरषार्थ का सही क्रम है=धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष 
  4. उपनिषद शब्द का अर्थ है=गुरु के समीप बैठकर ज्ञान की प्रप्ति 
  5. उपनिषदों के अनुसार सबसे उपयुक्त आदर्श है=मोक्ष 
  6. एकेश्वरवाद का अर्थ है=केवल एक ही ईश्वर की सता में विशवास करना 
  7. चारो आश्रमो का उल्लेख सर्वप्रथम किस उपनिषद में किया=जाबलोउपनिषद 
  8. वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था में सम्मिलित नही है=प्रजातांत्रिक समानता 
  9. उपनिषदों को वेदांत इसलिए कहा जाता है,क्योकि=ये वेदों का अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है 
  10. वेद और उपनिषदों में प्रमुख अंतर है=ये वेदों के अंतिम भाग है इनमे गभीर तात्विक विवेचन हुआ है 
  11. अधिकांश दर्शनों के अनुसार परम पुरुषर्थ=मोक्ष 
  12. आश्रम धर्म का अर्थ है=आयु वर्ग के अनुसार कर्तव्यों का पालन करना 
  13. पुरुषार्थ व्यवस्था में निम्न में से किस पुरुषार्थ को साधन पुरुषार्थ के रूप में मान्यता दी है =धर्म,अर्थ,काम 
  14. निवृति मार्ग के अनुसार कौनसा आश्रम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है=सन्यासी 
  15. गीता के अनुसार वर्णाआश्रम धर्म का आधार क्या है=गुण व् धर्म 
  16. मैक्समूलर के एकाधिदेववाद का अर्थ है=एक देवता का परम के रूप में उन्नयन 
  17. ऋतु के वैदिक सिध्दांत का तापर्य है=विश्व की नियमबध्दता 
  18. वेद प्रवृति मार्ग है जबकि उपनिषद है=कर्म मार्गी 
  19. त्रिवर्ग का क्या अर्थ है=धर्म,अर्थ,काम 
  20. प्रथम पुरुषार्थ है=धर्म                                                                                                                                                                                                                                                                                    पाठको से निवेदन है अगर आप लोगो को पसन्द आए तो आपकी राय जरूर लिखे                                        BY HASTRAM MEENA 

philosophy ncrt notes 2

             1 देववाद का विकास 
वैदिक सहिताओ के आधार पर मैक्समूलर आदि विद्वान् ने ईश्वर एव देववाद का स्थूल से सूक्ष्म की और विकास का उल्लेख करते है 
                        (ई)बहुदेववाद 
यह वेदों में निहित देववाद के विकास क्रम के प्रारम्भिक एवं स्थूलतम अवधारण है 
  इनके प्रत्येक मानवीय गुण का अनन्त बनाकर प्राकृतिक शक्तियों मव स्थापित क्र दिया गया है इसे ही देववाद कहते है इसमें 33 करोड़ देवी-देवता है जैसे-इंद्र,वरुण,सूर्य,अग्नि,मारुत,अशिवन आदि है 
      
  यास्क ने स्थान की दृष्टि से तीन भागो में वर्गीकरण किया है 
 (I) पृथ्वी -पृथ्वी पर अग्नि का स्थान सर्वोच्च नामा है इसके अलावा  -                        सोम,पृथ्वी,सरस्वती.ब्रहस्पति,आदि है 
(II)अंतरिक्ष -इनमे इंद्र का स्थान प्रमुख है व् इसके अलावा-                                          रूद्र,मरुत,वायु,मातरिश्वन,पर्जन्य 
(iii )घु=सूर्य,सविता/सवितृविष्णु,पूषण चंद्रमा मित्र,वरुन आदि प्रमुख है 
                  2 एकाधिदेववाद/एकेशतेश्वरवाद 
एकाधिदेववाद में एकत्व स्थपित करने का प्रथम प्रयास है जिसमे समय अवसर और आवश्यकता विशेष पर किसी  एक देवता को स्तुति में परम् देवता  के रूप में महत्व दिया जाने लगा 
 इसमें जिस देवता की आवश्यकता होती थी उसे ही महत्व दिया जाता है 
  
यह बहुदेववाद एम् एकेश्वरवाद की मध्य की कड़ी है जिसे मैक्समूलर ने हीनोथीज्म की सज्ञा गई है                                                                                              3 एकेश्वरवाद 
एकेश्वरवाद एकाधिदेवाद की आपेक्षा सूक्ष्म अवधारणा है 

Sunday, 12 February 2017

vaidik darshanv


  1. वेद शब्द का अर्थ जानना होता है 
  2. महृषि वेदव्यास द्धारा वेदों का वर्गीकरण किया गया है 
  3. कर्मकाण्ड का उद्देश्य सुखो की प्रप्ति व् स्वर्ग की प्रप्ति है                                             कर्मकाण्ड के तीन भाग 
  4. सहिता =यह  सरल रूप प्रदशित करती है 
  5. मंत्र =देवतो की स्तुति करने  लिए प्रयुक्त वाक्यो को मन्त्र कहते है या गध्यात्मक और पद्यात्मक रूप में सकलन है 
  6. ऋग्वेद =यह सबसे प्राचीन व् बड़ी  सहिता है इससे सम्बधित पुरोहितो को होतृ कहा जाता है 
  7. यजुर्वेद =इसका शब्दिक अर्थ है -यज  यह चम्पू शैली में है इससे सम्बंधनित पुरोहितो को अध्वर्यु कहते है 
  8. सामवेद =यह सगीत से सम्बन्धित है इससे सम्बधित पुरोहितो को उद्गाता कहते है 
  9. अथर्वेद =यह जादू,टोना,कर्षि ,सिचाई ,चिकित्सा ,राजनीती आदि से सम्बधित है इससे सम्बधित पुरोहितो को ब्राम्हण कहते है 
  10. त्रयी या वेदत्रयी =ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद कोकहते है                                                      ब्राह्मन 
  11. ऋग्वेद -ऐतरेय ,कौषीतकि 
  12. यजुर्वेद=शतपत तैतरीय 
  13. सामवेद=पंचविश षडविष,जैमिनी,अद्भत 
  14. अर्थवेद=गोपथ                                                                                                                                                                   आरण्यक 
  15. एकांत में बैठ कर लिखे गए ग्रंथो को आरण्यक कहते है यह यजो की विश्श्लेणात्मक व्याख्या करते है                                                             इन्हें कर्मकांड व् ज्ञानकाण्ड की मध्य की कड़ी है                                             ज्ञानकाण्ड (उपनिषद)
  16. उपनिषद वेदों का अंतिम भाग है 
  17. ज्ञानकाण्ड का अंतिम उदेश्य आत्माश्क्षात्कार या मोक्ष की प्रप्ति              वह गुरु के समीप बैठकर अपने अज्ञान का निवारण करना अर्थात ज्ञान की प्रप्ति करना                                                                                           by हस्त राम  मीना 

Saturday, 11 February 2017

philosophy ncert lesson 1


 भारतीय  दर्शन की परिभाषा 
दर्शन शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के द्रश्य धातु से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ देखना यहाँ देखने से तातपर्य "जानने ,साक्षात्कार करने अनुभूति करने करने से है 
जो देखा या जाना वह दर्शन है 
Philosophy शब्द ग्रीक भाषा के philos और sophia  शब्दो के योग से बना है फिलोस का अर्थ -प्रेम। अनुराग या आकर्षण होता है वही sophia  का अर्थ ज्ञान होता है अर्थात  -ज्ञान के प्रति प्रेम ,अनुराग होता उसे philosophy  कहलाती है
  1. मौलिकता =वह तत्व जो अपने आप नया हो मौलिक कहलाता है भारत का दर्शन विश्व का सबसे प्रचीन दर्शन है 
  2. दु ;ख से उत्पति -भारतीय दर्शन दु ;ख व समस्या से उत्पन बताया है 
  3. भारतीय दर्शन में तीन प्रकार के दु ;ख है (i)भौतिक (ii)शारीरिक (iii)दैविक 
  4. भारतीय दर्शन का उदेश्य =भारतीय दर्शन की उत्पति दु ;ख से हुई है इसीलए दु ;खो की आत्यन्तिक निवर्ति ही भारतीय दर्शन का उद्देश्य है इसे ही मोक्ष कहा जाता है 
  5. (अ )मोक्ष -आत्म -ज्ञान का उदय (ब )अज्ञान  का निवारण (स)दु;खो की पूर्णतः समाप्ति (द)जन्म-मरण चक्र की समाप्ति (त)अखण्ड़ आनन्द की अनुभूति 
  6. आध्यत्मिक प्रवर्ति = आत्मा (मैं) पर केंद्रित होना आध्यात्मिक कहलाता है भारतीय दर्शन आत्मा की सता को स्वीकार करता है भारतीय दर्शन- चार्वाकवाद  आत्मा की सत्ता को स्वीकार नही करता है 
  7. व्यावहारिकता =किसी भी विषय का जीवन से जोड़ा होना उसे व्यावहारिक बनाता है 
  8. श्रवण, मनन  निदिध्यासन (आ)श्रवण -गुरु के उपदेशो को श्रध्दापूर्वक सुनना  श्रवण है यह ह्रदय पक्ष को सूचित करता है (बी)मनन =गुरु के उपदेशो का तार्किक चिन्तन मनन कहलाता है मनन -बौद्धिक पक्ष को सूचित करता है  (डी)निदिध्यासन =मनन से निष्कर्षित सत्यो का जीवन में अभ्यास करना निदिध्यासन कहलाता है  यह क्रियात्मक  पक्ष सूचित करता है 
  9. आशावादिता =भारतीय दर्शन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है और भारतीय दर्शन निराशावादी न होकर आशावादी है 
  10. कर्मवाद में विश्वास =भारतीय  सभी दर्शन कर्मवाद में विशवास करते है केवल चर्वाकवाद इस में विश्वास नही करता है 
  11. भारतीय नीतिशात्र में तीन प्रकार के कर्म मने गये है (आ)सचित कर्म =पूर्व जन्मो में किए गया ऐसे कर्म जिनका फल मिलना प्रारम्भ नही हुआ है वः सचित कर्म कहलाते है (डी)प्रारब्ध =पूर्व जन्मो में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल प्रारम्भ हो गए है उन प्रारब्ध कर्म कहलाता है                                                        (फ)सचीयमान कर्म =इन्हें क्रियमान क्रम भी कहते है वर्तमान जीवन में किए गए ऐसे कर्म जिनका फल भविष्य के लिए सचित हो जाते है सचियमन कहलाते है 
  12. वास्तव में सचित कर्म ही जब फल देना प्रारम्भ क्र देते है तब प्रारब्ध कर्म कहलाते आई                                                                                                                                                                                                          भारतीय दर्शन का स्वरूप                                                         १ आस्तिक  =(i )वेदानुकूल=(ई)साख्य ,योग ,न्याय ,वैशेषिक                                                                                   (ईई )वैदिक =मीमांसा ,वेदांत                                                                                       2 नास्तिक =चावार्क ,जैन बौध्द 
  13. आस्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार करते है 
  14. नास्तिक =वे दर्शन जो वेदों को प्रमाणिक रूप में स्वीकार नही करते है चार्वाक ,जैन ,बौध्द 
  15. साख्य दर्शन =कपिल मुनि यह सबसे प्राचीन आस्तिक दर्शन है 
  16. योग दर्शन =पतंजिल इसकी साधना पध्दति अष्टगिक योग कहलाती है 1 यम २ नियम 3 आसन 4 प्राणायाम  5 प्रत्याहार 6 धारणा 7 ध्यान 8 समाधि                    (प्रारम्भिक पाँच बहिरंग एवं तीन अंतरंग योग कहलाते है 
  17. न्याय दर्शन =गौतम या तर्क पध्दति की लिए प्रसिद्ध है गौतम ने इसे अक्षपाद खा है कौटिल्य ने इसको आन्वीक्षकी कहा है 
  18. वैशेषिक =कणाद इसको औलूक्य दर्शन भी कहते है कणाद को उलूक भी कहते है 
  19. मीमांसा =जैमिनी कर्मकाण्ड को स्वीकार करता है 
  20. विदात =बादरायण ज्ञानकाण्ड को स्वीकार करता है                                                                                          ये दर्शन आस्तिक तथा इन्हें के सम्मिलित रूप को षड्दर्शन कहा जाता है 
  21. मीमांसा वह साख्य ऐसे नास्तिक दर्शन है जो ईश्वर के अस्तिव को स्वीकार नही करते है                                                                                                                                                                                                     BY हस्त राम मीना